आज हम बात करेंगे भारत में पंचायत राज व्यवस्था की जिसे स्थानीय स्वशासन भी कहा जाता है । जिसका उद्देश्य लोकतांत्रिक प्रणाली को जमीनी स्तर पर लागू करना था । ग्राम पंचायत द्वारा ग्रामीण इलाकों में आर्थिक विकास तथा सामाजिक न्याय को मजबूती मिली तथा सरकार द्वारा लागू योजनाओं को क्रियान्वित करना सरल हो गया । पंचायत राज व्यवस्था की वर्तमान स्थिति से पहले हमें इसका इतिहास जानना आवश्यक है ।
पंचायत राज व्यवस्था का इतिहास एवं पृष्ठभूमि
- स्थानीय स्वशासन की व्यवस्था भारत में प्राचीन काल से ही प्रचलित रही है , चाहे वह चोल साम्राज्य हो या मौर्य साम्राज्य । स्थानीय स्वशासन के विषय में संपूर्ण जानकारी कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में लिखी थी ।
- ब्रिटिश शासन काल में "लॉर्ड रिपन" को स्थानीय स्वशासन का जनक माना जाता है वर्ष 1882 में इन्होंने स्थानीय स्वशासन संबंधी प्रस्ताव पेश किया था ।और 1882 में ही इन्होंने ग्राम बोर्ड की स्थापना भी की थी। लॉर्ड रिपन द्वारा पेश प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन का "मैग्नाकार्टा" भी कहा जाता है ।
- सन् 1919 में भारत शासन अधिनियम के तहत प्रांतों में दोहरे शासन की व्यवस्था की गई तथा स्थानीय स्वशासन को हस्तांतरित विषयों की सूची में रखा गया ।
- स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात संविधान के अनुच्छेद 40 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत स्थानीय स्वशासन का प्रावधान किया गया । अनुच्छेद 40 में स्पष्ट निर्देशों के बावजूद इस दिशा में समुचित कार्य नहीं किए गए । स्वतंत्र भारत में ग्राम पंचायतों की स्थापना के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बहुत अधिक बल दिया था ।
- इसके पश्चात् सन् 1950 मैं सामुदायिक विकास मंत्रालय की स्थापना की गई । सन 1956 में बलवंत मेहता समिति बनी, जिसमें नवंबर 1957 में अपनी रिपोर्ट सौंपी ,जिसे 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद द्वारा मंजूरी मिली । समिति ने अपनी रिपोर्ट में त्रीस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था की सिफारिश की थी। समिति के अनुसार पंचायत राज तीन स्तर का होना चाहिए जो है –
- ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत,
- ब्लॉक स्तर पर पंचायत समिति,
- जिला स्तर पर जिला परिषद ।
पंचायती राज व्यवस्था का इतिहास |
इसी आधार पर स्वतंत्र भारत में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा प्रथम बार 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के कांगसिया गांव में पंचायत राज व्यवस्था की शुरुआत की गई।
- सन 1977 में अशोक मेहता समिति बनायी गई । जिसने 1978 में अपनी रिपोर्ट सौंपी , जिसमें उन्होंने दि्स्तरीय पंचायत राज की सिफारिश की थी जिसे अस्वीकार कर दिया गया ।
- सन् 1985 में राव समिति बनी जिसने अपनी रिपोर्ट में चार स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था की तथा महिलाओं के आरक्षण की बात की थी ।
- 1986–1987 में सिंघवी ने अपनी रिपोर्ट में पंचायती राज्य व्यवस्था को संविधान में स्थान देने की सिफारिश की थी ।
- 1988–1989 में पी. के. थुगंन समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में पंचायत राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने की सिफारिश की थी ।
- बलवंत राय मेहता समिति (1956–1957)
- अशोक मेहता समिति (1977–1978)
- जी वी के राव समिति (1985)
- डॉ एल.एम. सिंघवी समिति (1986)
- पी. के. थुगंन समिति (1989–1989)
इस प्रकार सिंघवी समिति और पी. के. थुंगन समिति की सिफारिश पर सर्वप्रथम पंचायत राज विधेयक 1989 में संसद में पेश किया गया । किंतु उस समय प्रवृत्त कांग्रेस सरकार को अपेक्षित बहुमत न मिलने से उक्त विधेयक पारित नहीं हो सका ।
इसके पश्चात सन 1992 में प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के शासनकाल में 73वां और 74वां संविधान संशोधन द्वारा संविधान में पंचायत राज व्यवस्था को सम्मिलित किया गया और 24 अप्रैल 1993 को इसे लागू किया गया । इसी कारण प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है ।
73वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में 16 अनुच्छेद और एक अनुसूची– ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई । और इस प्रकार संविधान में त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को सम्मिलित किया गया । वर्तमान में संविधान के भाग 9 के अनुच्छेद 243, 243क से 243ण तक पंचायत के संबंध में उपबंध किए गए हैं ।
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तथा 74वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में भाग 9 का द्वारा 18 नए अनुच्छेद और एक नई अनुसूची –12वीं अनुसूची जोड़ी गई । 74 वें संविधान संशोधन द्वारा नगर पालिकाओं में लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना की गई ।
पंचायत राज व्यवस्था पर यह पहला भाग है जिसमें इसके इतिहास और पृष्ठभूमि की बात की गई है अगले भाग में हम इसकी संवैधानिक स्थिति की बात करेंगे ।
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