मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक प्राणी होने के नाते प्रत्येक मनुष्य की आवश्यकताएं होती है और इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य कभी ऐसे आचरण का प्रयोग करता है जो व्यक्ति या समाज के लिए हानिकारक होता है । ऐसे ही कार्य या आचरण को अपराध कहते हैं और इसके परिणाम को दण्ड कहते है । अपराध एक रोग है जो संपूर्ण समाज के लिए घातक है। इसी रोग के निदान के लिए दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता का उदय हुआ है।इनके अंतर को समझने के लिए हमें दोनों के बारे में जानना आवश्यक है ।


I.P.C. और C.R.P.C. में अन्तर
I.P.C. और C.R.P.C. में अन्तर

   I.P.C या Indian Penal Code

     I.P.C. को हिंदी में भारतीय दंड संहिता और उर्दू में इरात- ए- हिंद भी कहते हैं । भारतीय दंड संहिता 1860 में बना था । वर्तमान भारतीय दंड संहिता समय और काल के अनुसार बदलती हुई अपने वर्तमान स्वरूप तक पहुंची है प्रारंभ में इसमें 488 धाराएं थी लेकिन समय-समय पर इसमें संशोधन द्वारा वृद्धि होती गई और वर्तमान में इसमें 511 धाराएं और 23 अध्याय है ।1834 में पहला विधि आयोग बनाया गया था जिसके अध्यक्ष "लॉर्ड मेकाले" थे इन्हीं की अध्यक्षता में यह तैयार हुआ और 6 अक्टूबर 1860 में संसद द्वारा पास हुआ 1862 में पूरी तरह से लागू किया गया ।आईपीसी से बड़ा देश में और कोई दांडिक कानून नहीं है।


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           अतः दंड विधि ऐसे प्रत्येक मानव आचरण को परिभाषित करती है जिससे दूसरे व्यक्ति या समाज को हानि होती है इन्हीं आचरण को अपराध कहते हैं । दण्ड विधि इन अपराधों के लिए दण्ड भी नियत करती है । कोई कार्य अपराध है या नहीं या इसके लिए किस प्रकार की सजा होगी यह दण्ड विधि बताती है।

    C.R.P.C. या Criminal Procedure Code

   C.r.p.c. का पूरा नाम दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 है जिसका उद्भव दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के स्थान पर हुआ है । दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में अपेक्षित संशोधन हेतु भारत सरकार ने 14वें विधि आयोग का गठन किया । आयोग की रिपोर्ट के आधार पर भारत सरकार ने मूल संहिता, 1898 के स्थान पर दण्ड प्रक्रिया संहिता,1973 पारित किया जो 1 अप्रैल 1974 से लागू हुआ।


               वर्तमान दंड प्रक्रिया संहिता में 484 धाराएं तथा 2 अनुसूचियां हैं  और 37 अध्याय हैं । किसी भी अपराध के बाद दो तरह की प्रक्रिया होती है । एक प्रक्रिया पीड़ित के संबंध में और दूसरी अपराधी के संबंध में । सीआरपीसी  इन्ही प्रक्रियाओं का समूह  है ।कुछ  प्रक्रियाएं इस प्रकार है -
(1)   अपराधों की जांच
(2)   व्यक्तियों की गिरफ्तारी
(3)    सबूत एकत्रित करना
(4)    दोषियों का निर्धारण करना
(5)    समन , वारंट आदि का पालन कराना आदि।

  एक उदाहरण द्वारा I.P.C. और C.R.P.C.  के बारे में जानते हैं

    यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति या अन्य मूल्यवान वस्तु उसकी सहमति के बिना प्राप्त कर लेता है या उसे गलत आशय से ले लेता है तो ऐसे कार्य को I.p.c. के section 378 के अंतर्गत चोरी कहा जाता है और जिसके लिए I.p.c. के section 379 में दंड का प्रावधान किया गया है । किंतु अपराध ज्ञात होने से लेकर अपराधी को दंड घोषित होने तक की जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसका उल्लेख दंड प्रक्रिया संहिता में किया गया है । जैसे अपराध की जांच , साक्ष्य संग्रह करना ,  अपराधी दोषी है या नहीं और संदिग्धों की जांच करना आदि।

I.P.C. और C.R.P.C. में अन्तर

कानून को दो भागों में बांटा गया है - मौलिक और प्रक्रियात्मक । ओर फ़िर इनको दो भागों में बांटा गया  है - सिविल कानून   ओर दंडिक कानून । I.p.c.  मौलिक विधि है और C.r.p.c. प्रक्रियात्मक विधि है । I.p.c.विभिन्न अपराधों को परिभाषित करता है और इनके लिए दंड का प्रावधान करता है जबकि C.r.p.c. विभिन्न प्रक्रियाओं का उल्लेख करता जैसे अपराध की जांच , तलाशी , विचारण आदि सब C.r.p.c के अंतर्गत आता है।


                 कोई कार्य अपराध है या नहीं इसके लिए I.p.c. के विभिन्न अध्याय को पढ़ना होगा जबकि अपराधों का विचारण कैसे होगा , एफआईआर कैसे लिखी जायेगी आदि यह सब c.r.p.c. बताती है। I.P.C. ओर C.R.P.C. एक दूसरे पर निर्भर करते है। यह दोनो ही आपराधिक न्याय व्यवस्था का महत्वपूर्ण भाग है।