आज हम बात करेंगे कि  अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकती है। इससे पूर्व यह जानना आवश्यक है कि जमानत क्या होती है । वैसे तो दंड प्रकिया संहिता में जमानत को कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है किंतु इसका तात्पर्य ऐसी प्रतिभूति से है जिससे अभियुक्त को विचारण लंबित होने की स्थिति में छोड़ दिया जाता है और इस लम्बित अवधि में  वह स्वयं को मुक्त कर के एक सामान्य नागरिक की भांति समाज में स्वतंत्रता से रह सकता है ।हमारी दण्ड प्रकिया संहिता का यह सामान्य नियम है कि यथा संभव जमानत स्वीकार की जाए।
    

अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकती है
अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकती है


                  अतः कुछ दशा में अजमानतीय अपराध की दशा में जमानत भी स्वीकार की जा सकती है । अजमानतीय अपराध की दशा में जमानत कब ली जा सकती है इसके संबंध में भी दंड प्रक्रिया संहिता में की धारा 437 में उपबंध किए गए हैं।

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         Section 437 - अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकती है

(1)     जब कोई व्यक्ति , जिस पर अजमानतीय अपराध का                      अभियोग है या जिस पर संदेह है की उसने वह अपराध किया है, पुलिस थाने के भार साधक अधिकारी द्वारा वारंट के बिना निरूद्ध किया जाता है या उच्च न्यायालय अथवा सेशन न्यायालय से भिन्न न्यायालय के समक्ष हाजिर होता है तब वह जमानत पर छोड़ा जा सकता है, किंतु -
                 
                     (क) यदि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार है कि ऐसा व्यक्ति मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का दोषी है तो इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा;
                  (ख) यदि ऐसा अपराध कोई संज्ञेय अपराध है और ऐसा व्यक्ति मृत्यु, आजीवन कारावास या 7 वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय किसी अपराध के लिए पहले दोष सिद्ध किया गया है तो वह इस प्रकार नहीं छोड़ा जाएगा:
       
                    परंतु इसके कुछ अपवाद है जो निम्न प्रकार है । उपयुक्त परिस्थितियों के बावजूद न्यायालय जमानत पर छोड़े जाने का निर्देश दे सकेगा , यदि ऐसा व्यक्ति-

  •   16 वर्ष से कम आयु का है
  •    कोई स्त्री है
  •    कोई रोगी है
  •     या शिथिलांग व्यक्ति है।
(2)    यदि ऐसे अधिकारी या न्यायालय को, यथास्थिति, अन्वेषण, जांच या विचारण के किसी प्रक्रम मैं यह प्रतीत होता है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार नहीं है कि अभियुक्त ने अजमानतीय अपराध किया है किंतु उसके दोषी होने के बारे में और जांच करने के लिए पर्याप्त आधार है जमानत पर, या ऐसे अधिकारी या न्यायालय के स्वविवेकानुसार , इसमें इसके पश्चात उपबंध प्रकार से अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभाओं रहित बंधपत्र निष्पादित करने पर, छोड़ दिया जाएगा।

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(3)    जब कोई व्यक्ति जिस पर ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि 7 वर्ष तक की या उससे अधिक की है , दंडनीय कोई अपराध या भारतीय दंड संहिता, 1860 के अध्याय 6, अध्याय 16 या अध्याय 17 के अधीन कोई अपराध करने या ऐसे किसी अपराध का दुष्प्रेरण या षड्यंत्र या प्रयत्न करने का अभियोग या संदेह है, उपधारा (1 ) के अधीन जमानत पर छोड़ा जाता है, तो न्यायालय यह शर्त निरूपित करेगा -
                  (क)  कि ऐसा व्यक्ति इस अध्याय के अधीन निष्पादित बंधपत्र की शर्तों के अनुसार हाजिर होगा;
                  (ख)  कि ऐसा व्यक्ति उस अपराध जैसा, जिसको करने का उस पर अभियोग या संदेह है, कोई अपराध नहीं करेगा;  और
                  (ग)   कि ऐसा व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट ना करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा या साक्ष्य को नहीं बिगड़ेगा,
             और न्याय के हित में ऐसी अन्य शर्तें, जिसे वह ठीक समझे, अधिरोपित कर सकता है।


(4)    उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर किसी व्यक्ति को छोङने वाला अधिकारी या न्यायालय, ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगा।


(5)    यदि कोई न्यायालय, जिसने किसी व्यक्ति को उपधारा (1) या उपधारा (2) के अधीन जमानत पर छोड़ा है, ऐसा करना आवश्यक समझता है, तो ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने का निर्देश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।


(6)    यदि मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय किसी मामले में ऐसे व्यक्ति का विचारण, जो किसी अजमानतीय अपराध का अभियुक्त है, उस मामले में साक्ष्य लेने के लिए नियत प्रथम तारीख से 60 दिन की अवधि के अंदर पूरा नहीं हो जाता है तो, यदि ऐसा व्यक्ति उक्त संपूर्ण अवधि के दौरान अभिरक्षा में रहा है तो, जब तक ऐसे कारणों से जो लेखाबद्ध किए जाएंगे, मजिस्ट्रेट अन्यथा निर्देश न दे वह मजिस्ट्रेट को समाधानप्रद जमानत पर छोड़ दिया जाएगा।


(7)     यदि अजमानतीय अपराध कि अभियुक्त व्यक्ति के विचारण के समाप्त हो जाने के पश्चात ओर निर्णय दिए जाने के पूर्व किसी समय न्यायालय की यह राय है कि यह विश्वास करने के लिए आधार है कि अभियुक्त किसी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और अभियुक्त अभिरक्षा में है, तो वह‌ अभियुक्त को, निर्णय सुनने के लिए अपने हाजिर होने के लिए प्रतिभुऔं रहित बंधपत्र उसके द्वारा निष्पादित किए जाने पर छोड़ देगा।



                           इस धारा में अजमानतीय अपराध की दशा में कब जमानत ली जा सकेगी के बारे में प्रावधान किए गए हैं। इस धारा के अनुसार अजमानतीय अपराध कि ऐसे मामले जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय ना हो, तो अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जा सकता है परंतु यदि अभियुक्त 16 वर्ष से कम आयु का या महिला या बीमार या अक्षम व्यक्ति हो तो उसका अपराध मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय होने पर भी उसे जमानत पर छोड़ा जा सकता है।
   

                      जमानत कब रद्द हो सकती है 

किसी अभियुक्त की जमानत मंजूर हो जाने के पश्चात निम्नलिखित परिस्थितियों में उसे निरस्त भी किया जा सकता है-


(1)  यदि जमानत पर छूटने के बाद अभियुक्तों फिर से वही अपराध करता है जिसके लिए उसका विचारण चल रहा है तो इस आधार पर उसकी जमानत रद्द की जा सकती है।

(2)   यदि वह मामले के अन्वेषण में बाधा उत्पन्न करता है तथा तलाशी आदि अवरुद्ध करता है।

(3)     यदि यदि वह साक्ष्य में हेराफेरी करता है या साक्षियों को डराता धमकाता है , या साक्ष्य को नष्ट करता है।

(4)     यदि वे देश के बाहर विदेश मैं पलायन करता है या फरार हो जाता है।

(5)      यदि वह बदले की भावना से प्रेरित होकर पुलिस या अभियोजन के साक्षियों के प्रति हिंसा करता है।
                          निम्न स्थितियों में अभियुक्त की जमानत को न्यायालय द्वारा रद्द किया जा सकता है और इनके अलावा ऐसी परिस्थितियां जिन्हें न्याय के हित में न्यायालय उचित समझे अभियुक्त की जमानत को रद्द कर सकता है।

                   प्रस्तुत लेख में हमने यह जाना कि कब अजमानतीय अपराध की दशा में जमानत ली जा सकती है। इसके संबंध में दंड प्रक्रिया संहिता जो उपबंध किए गए हैं वह वर्णित किए गए हैं इनके अतिरिक्त यह न्यायालय के विवेक पर भी निर्भर करता है कि वह किसे जमानत दे या ना दे।

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