इस लेख में हम बात करेंगे अपराध की जांच मे पुलिस की भूमिका की। किसी अपराध की जांच करने से पूर्व पुलिस को उस अपराध की जानकारी होनी चाहिए । जिसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 154 में प्रथम सूचना रिपोर्ट के बारे में उपबंध किए गए हैं यह धारा किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने की प्रथम सूचना, अधिकारी को दिए जाने से संबंधित है ताकि पुलिस इसके आधार पर अपराध की जांच कर सके।

                       भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय 12 के अंतर्गत धारा 154 से 176 तक में अपराध के संबंध में पुलिस को जानकारी देने और अपराध की जांच में पुलिस की भूमिका अथवा पुलिस की जांच संबंधी शक्तियों का उल्लेख किया गया है। धारा 154 में प्रथम इत्तला रिपोर्ट के बारे में विस्तृत रूप से बताया गया है, इसी रिपोर्ट के आधार पर पुलिस अन्वेषण कार्य प्रारंभ करती है, जिसे विभिन्न धाराओं में उपबंध किया गया है। अपराध की जांच में पुलिस की भूमिका निम्नलिखित है–


अपराध की जांच मे पुलिस की भूमिका
अपराध की जांच मे पुलिस की भूमिका


असंज्ञेय मामलों में सूचना और ऐसे मामलों का अन्वेषण                 

भारतीय दंड संहिता की धारा 155 में असंज्ञेय अपराधों के लिए निम्न व्यवस्था की गई है–

(1)   जब पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को उस थाने की सीमाओं के अंदर असंज्ञेय अपराध किए जाने की सूचना दी जाती है तब वह ऐसी सूचना का सार, ऐसी पुस्तक में, जो ऐसे अधिकारी द्वारा ऐसे प्रारूप में रखी जाएगी जो राज्य सरकार इस निमित्त विहित करें, या प्रविष्ट कराएगा और सूचना देने वाले को मजिस्ट्रेट के पास जाने को निर्देशित करेगा।

(2)   कोई पुलिस अधिकारी किसी असंज्ञेय मामले का अन्वेषण ऐसे मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना नहीं करेगा जिसे ऐसे मामले का विचारण करने की या मामले को विचारण के लिए सुपुर्द करने की शक्ति है।

(3)    कोई पुलिस अधिकारी ऐसा आदेश मिलने पर (वारंट के बिना गिरफ्तारी करने की शक्ति के सिवाय) अन्वेषण के बारे में वैसे ही शक्तियों का प्रयोग कर सकता है जैसी पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी संज्ञेय मामले में कर सकता है।।

(4)    जहां मामले का संबंध ऐसे दो या अधिक अपराधों से है, जिनमें से कम से कम एक संज्ञेय है वहां इस बात के होते हुए भी कि अन्य अपराध असंज्ञेय है यह मामला संज्ञेय मामला समझा जाएगा।

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                        धारा 155 में असंज्ञेय मामलों में सूचना और उन में अपनाई जाने वाली जांच की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है , चूंकि असंज्ञेय मामले संज्ञेय मामलों से कम गंभीर प्रकृति के होते हैं इसलिए असंज्ञेय मामलों में पुलिस आधिकारी मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना अन्वेषण का कार्य प्रारंभ नहीं कर सकता।

 संज्ञेय मामलों का अन्वेषण करने की पुलिस अधिकारी की शक्ति

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 में संघीय मामलों में पुलिस द्वारा जांच के लिए निम्न प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है–

(1)  जब कोई पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बिना किसी ऐसे संज्ञेय मामले का अन्वेषण कर सकता है, जिसकी जांच या विचारण करने की शक्ति उस थाने की सीमाओं के अंदर के स्थानीय क्षेत्र पर अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को अध्याय 13 के उपबंधो के अधीन है।

(2)   ऐसे किसी मामले में पुलिस अधिकारी की किसी कार्रवाई को किसी भी प्रक्रम में इस आधार पर प्रश्नगत न किया जाएगा कि वह मामला ऐसा था जिसमें ऐसा अधिकारी इस धारा के अधीन अन्वेषण करने के लिए सशक्त न था।

(3)   धारा 190 की अधीन सशक्त किया गया कोई मजिस्ट्रेट पूर्वोक्त प्रकार के अन्वेषण का आदेश कर सकता है।

                इस धारा में संज्ञेय मामलों में अन्वेषण के लिए प्रावधान किए गए हैं। वैसे तो संज्ञेय मामलों में पुलिस द्वारा अन्वेषण का प्रारंभ धारा 154 के अंतर्गत दर्ज प्राथमिकी के आधार पर ही किया जा सकता है परंतु पुलिस अधिकारी केवल इस संदेह पर की संज्ञेय अपराध हुआ है अन्वेषण प्रारंभ कर सकता है।

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                            उल्लेखनीय है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 के अधीन अन्वेषण में निम्नलिखित सम्मिलित है–

  1. घटनास्थल पर प्रस्थान करना;
  2. अपराध की तथ्य एवं परिस्थितियों की अभी निश्चित करना;
  3. संदिग्ध अपराधी का पता लगाकर उसे गिरफ्तार करना;
  4. अपराध से संबंधित साक्ष्य एकत्रित करना, जिनमें विभिन्न व्यक्तियों का परीक्षण, स्थानों की तलाशी तथा संबंधित वस्तुओं की जब्ती आदि शामिल है जिन्हें विचारण के दौरान न्यायालय में पेश करना होता है;
  5. विचारण प्रारम्भ कराने हेतु धारा 173 के अन्तर्गत आरोप–पत्र न्यायालय में दाखिल करना।

 

                 धारा 156 के अधीन किसी कथित संज्ञेय अपराध की परिस्थितियों के बारे में अन्वेषण करने हेतु पुलिस को वैधानिक अधिकार है जिनमें मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप की अपेक्षा नहीं की जाती।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 157 में पुलिस द्वारा अपराध की जांच में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया का वर्णन किया गया है–

इस धारा में पुलिस के कर्तव्यों पर प्रकाश डाला गया है। यदि पुलिस अधिकारी को संज्ञेय अपराध की सूचना प्राप्त होती है  या यह संदेह करने का पर्याप्त कारण है कि संज्ञेय अपराध कारित हुआ है, तो ऐसे अपराध की रिपोर्ट उस मजिस्ट्रेट को दी जाएगी जो ऐसे अपराध का संज्ञान करने के लिए सशक्त है और वह मामले के तथ्य एवं सूचना प्राप्त करने के लिए घटनास्थल पर स्वयं जाएगा अथवा इस हेतु अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को भेजेगा । किंतु यदि मामला असंज्ञेय प्रकृति का है तो पुलिस अधिकारी ऐसा नहीं कर सकता और यदि जांच के लिए पर्याप्त आधार नहीं है तो पुलिस अधिकारी अन्वेषण कार्य नहीं कर सकता और दोनों ही दशाओं में पुलिस अधिकारी उक्त रिपोर्ट को संबंधित मजिस्ट्रेट को देगा।

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                                          इस प्रकार अपराध की जांच में पुलिस की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है क्योंकि उसी जांच के आधार पर मामले का विचारण टिका होता है इसलिए पुलिस अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह अपराध की जांच तीव्रगति एवं निष्पक्षता से करें जिससे पीड़ित को त्वरित–न्याय प्राप्त हो सके । दोस्तों "अपराध की जांच में पुलिस की भूमिका" हमारा यह लेख कैसा लगा हमें कमेंट करके बताएं।