संविधान के 74 वे संविधान संशोधन द्वारा नगरों में स्थापित स्वायत्त संस्थानों को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ । इस संशोधन द्वारा संविधान में एक नया भाग 9–क जोड़ा गया , जिसमें 18 अनुच्छेद है तथा एक अनुसूची 12 वीं अनुसूची जोड़ी गई , जिसमें ऐसे विषयों का उल्लेख किया गया है जिन पर नगरपालिका कार्य कर के अपने नागरिकों का उत्थान कर सकें । हम बात करेंगे नगर पालिकाओं के गठन , संरचना , अधिकार और कार्य के

नगरपालिकाओं का गठन

अनुच्छेद 243(थ) प्रत्येक राज्य में त्रिस्तरीय नगरपालिकाओं का उपबंध करता है –
  • ऐसे नगर जो ग्रामीण से नगरों के लिए परिवर्तित होने की दशा में है उनके लिए नगर पंचायत,
  • लघुत्तर क्षेत्र के लिए नगर पालिका परिषद और ,
  • किसी विस्तृत क्षेत्र के लिए नगर निगम ।

 

नगर पालिकाओं की संरचना

अनुच्छेद 243 (द) के अनुसार , नगर पालिकाओं के सभी स्थान प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाएंगे । और इस निर्वाचन के प्रयोजन के लिए प्रत्येक नगर पालिका क्षेत्र को छोटे-छोटे क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा , जिसे "वार्ड" कहते हैं ।

नगरपालिका
नगरपालिका

  • अनुच्छेद 243(ध) में वार्ड समितियों के गठन का उपबंध किया गया है जिसके निर्वाचन , संरचना संबंधी विधि विधानमंडल विहित करेगा।
  • अनुच्छेद 243 (न) में नगर पालिकाओं में अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है।

 

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                         नगर पालिकाओं का कार्यकाल प्राय 5 वर्ष का होता है । 5 लाख से कम आबादी क्षेत्र में नगर पालिका परिषद तथा 5 लाख से अधिक आबादी वाले क्षेत्र में नगर निगम का गठन होता है । नगरपालिका का सदस्य बनने के लिए न्यूनतम 21 वर्ष की आयु होनी चाहिए । नगरपालिका के सदस्यों की संख्या क्षेत्र की जनसंख्या पर निर्भर करती है । प्रत्येक नगर पालिका में एक "अध्यक्ष" होता है । अध्यक्ष का चुनाव जनता द्वारा या जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा होता है । प्रत्येक नगर पालिका में एक "उपाध्यक्ष" भी होता है ।


                     नगर निगम के अध्यक्ष को "महापौर" (मेयर) कहा जाता है मेयर का चुनाव भी सीधे जनता द्वारा या नगर निगम के सदस्य करते हैं नगर निगम में एक "उपमहापौर" भी होता है ।


             भारत में सबसे पहला नगर निगम स्थापित किया गया वह 1687 में मद्रास में स्थापित किया गया , इसके पश्चात 1888 में मुंबई में तथा 1951 में कलकत्ता में नगर निगम की स्थापना की गई ।

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नगर पालिकाओं की शक्तियां और कार्य

अनुच्छेद 243 (ब) में नगर पालिकाओं की शक्ति , अधिकार और कार्य का वर्णन किया गया है । जिसके अनुसार राज्य का विधान मंडल विधि बनाकर नगरपालिका को ऐसी शक्तियां और कार्य प्रदान कर सकता है जिन्हें पर ठीक समझे । और ऐसी विधि द्वारा नगर पालिकाओं को निम्नलिखित के संबंध में उत्तरदायित्व पर जा सकेंगे –
  • आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना,
  • ऐसे कार्यों और स्कीमों को क्रियान्वित करना जो उन्हें सौंपी जाए , जिनके अंतर्गत 12वीं अनुसूची में लिखित विषय भी सम्मिलित हैं ।

                      संविधान की 12वीं अनुसूची में 18 विषय हैं जिन पर विधि बनाने के लिए नगर पालिकाओं को शक्ति प्रदान की गई है।


                इसके अलावा नगरपालिका उनको कर रोपण की शक्ति भी प्रदान की गई है ।

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      प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर एक जिला योजना समिति  तथा महानगर क्षेत्र में महानगर योजना समिति के गठन के लिए भी संविधान में उपबंध किए गए हैं । जिनका कार्य संपूर्ण क्षेत्र में विकास योजना प्रारूप को तैयार करना होता है ।

नगरपालिकाओं का महत्व

लोकतंत्र में शासन जनता का होता है । जो जनता द्वारा जनता के लिए चलाया जाता है । क्योंकि नगर पालिकाओं के सदस्य जनता के सीधे संपर्क में होते हैं तथा वे उसी स्थान से संबंधित होते हैं , जिससे नगर पालिकाओं का महत्व और भी बढ़ जाता है । जिले में शिक्षा , पार्क , सफाई , कचरा एकत्रीकरण , कचरा निस्तारण आदि समस्त कार्य नगर पालिका द्वारा ही किए जाते हैं । इन्हीं कारणों से लोकतंत्र प्रणाली में नगरपालिका का अत्यंत महत्व है।