पंचायती राज व्यवस्था का गठन | कार्य | शक्ति 


आज हम बात करेंगे संविधान में उल्लेखित पंचायती राज व्यवस्था की । इसके पिछले भाग में पंचायती राज व्यवस्था के अर्थ और इतिहास के बारे में बताया गया था । पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय स्वशासन भी कहते हैं । भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान है । 

73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान के भाग 9 में पंचायतों की व्यवस्था की गई है जिसमें 16 अनुच्छेद और एक अनुसूची–11वीं अनुसूची सम्मिलित है । पंचायत राज व्यवस्था से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, ( जिसमें पंचायतों का गठन , संरचना , आरक्षण , कार्यकाल , निहर्रता , पंचायतों की शक्तियां , पंचायतों के कार्य आदि सम्मिलित है ) निम्नलिखित है

पंचायतों का गठन और संरचना

  • अनुच्छेद 243 (क) यह कहता है, कि ग्राम सभा ग्राम की सीमा में ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगी यह ऐसे कार्य करेगी जो राज्य विधानमंडल विधि बनाकर निर्देशित करें ।


  • भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का प्रावधान है अतः अनुच्छेद 243 (ख) , प्रत्येक राज्य में ग्राम स्तर , मध्यवर्ती स्तर और जिला स्तर पर पंचायतों के गठन का प्रावधान करता है । किंतु यदि किसी राज्य की जनसंख्या 20 लाख से कम है वहां मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों का गठन करना आवश्यक नहीं होगा।


  • अनुच्छेद 243 (ग) के अधीन राज्य विधान मंडल को विधि द्वारा पंचायतों की संरचना के लिए उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई है  । परंतु किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या और ऐसी पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या के बीच अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही होगा । और ऐसे सभी स्थान प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए व्यक्तियों से भरे जाएंगे ।

  • [अनुच्छेद 243 ग(4)] पंचायत क्षेत्र के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों , चाहे वह प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए हो या किसी अन्य रीति से और पंचायत के अध्यक्ष को पंचायत के अधिवेशन में मत देने का अधिकार होगा ।


  •  ग्राम स्तर पर पंचायत का अध्यक्ष ऐसी रीति से निर्वाचित किया जाएगा जो राज्य विधान मंडल विधि द्वारा विहित करें जबकि मध्यवर्ती और जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन उसके सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाएगा ।


पंचायती राज व्यवस्था
पंचायती राज व्यवस्था 

पंचायतों में आरक्षण व्यवस्था

  • अनुच्छेद 243 घ (1) के अनुसार प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे ।
  • खंड (1) के अधीन आरक्षित स्थानों में से एक तिहाई स्थान  अनुसूचित जातियों और जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे – खंड (2)
  • प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गए स्थानों की कुल संख्या के एक तिहाई स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे – खंड (3)
  • खंड (4) और खंड (5) में इसी प्रकार पंचायतों के अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है ।

 पंचायतों का कार्यकाल

अनुच्छेद 243 (ड़) के अनुसार , पंचायतों का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा इसके पूर्व भी उनका विघटन किया जा सकता है यदि तत्समय प्रवत्त किसी विधि के अधीन ऐसा उपबंध हो ।

पंचायतों की शक्तियां प्राधिकार और उत्तरदायित्व या कार्य


अनुच्छेद 243 (छ) यह कहता है कि
, राज्य का विधान मंडल विधि द्वारा इस संविधान के उपबंधो के अधीन रहते हुए ,  पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकता है जो वह आवश्यक समझे और ऐसी विधि में पंचायतों को ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए जैसी उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं , निम्न शक्तियां और उत्तरदायित्व के लिए उपबंध किए जा सकेंगे –

  1. आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना ,
  2. आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की स्कीमों को , जो उन्हें सौंपी जाए , जिनके अंतर्गत 11वीं अनुसूची में वर्णित विषय से संबंधित स्कीमें भी हैं , क्रियान्वित करना ।

पंचायतों की करारोपण की शक्तियां

अनुच्छेद 243 (ज) यह कहता है कि , राज्य विधान–मंडल विधि बनाकर पंचायतों को अपनी सीमा में कर शुल्क , पथकर और फीसों को अधिरोपित करने , संग्रहित करने और विनियोजित करने की शक्ति प्रदान करेगा । और ऐसी विधि में उपयुक्त करों के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया और प्रयोजनों का उल्लेख होगा ।

                      तथा राज्य संचित निधि में से पंचायतों के लिए सहायता अनुदान का भी उपबंध करेगा ।

वित्त आयोग की स्थापना

  • अनुच्छेद 243 (झ) यह उपबंधित करता है कि , राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष के अवसान पर पंचायतों की वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की समस्त वित्तीय संबंधी विषयों पर राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट देगा ।
  • अनुच्छेद 243 (ञ) के अनुसार , राज्य विधान मंडल विधि द्वारा पंचायतों के लेखाओं के रखरखाव और उनकी संपरीक्षा के लिए उपबंध करेगा ।

पंचायतों के निर्वाचन

अनुच्छेद 243 (ट) में यह कहा गया है कि , पंचायतों की निर्वाचन संबंधी समस्त कार्य निर्वाचन आयोग में निहित होंगे , यह कार्य हैं – 

  1.       निर्वाचक नामावली तैयार करना ,
  2.       निर्वाचनों का संचालन ,
  3.       निर्वाचनों का अधीक्षण ,
  4.       निर्वाचनों का निदेशन और नियंत्रण ।

          अतः पिछले भाग में हमने पंचायत राज व्यवस्था के इतिहास और पृष्ठभूमि के बारे में उल्लेख किया था । इस भाग में हमने पंचायत राज व्यवस्था की संवैधानिक उपबंध की विस्तृत विवेचना की है । जिसमें पंचायतों का गठन और संरचना , पंचायतों में आरक्षण की व्यवस्था , पंचायत का कार्यकाल , पंचायत के सदस्यों की निर्रहता , पंचायतों की शक्तियां और उत्तरदायित्व तथा पंचायतों के कार्य । यहां पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित समस्त पहलुओं पर विस्तृत वर्णन किया गया है ।