आज हम बात करेंगे दण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार की। सबसे पहले हम यह जानेंगे कि दण्ड क्या है ? प्राचीन काल से ही समाज में दण्ड की व्यवस्था रही है और समय-समय पर दण्ड का स्वरूप भी बदलता रहा है जहां प्राचीन काल में दंड का भयावह स्वरूप अथवा अत्यधिक क्रूर स्वरूप प्रचलन में था वही वर्तमान में दंड का सुधारात्मक स्वरूप प्रचलन में है । इन सबसे पहले हमें दंड के बारे में जानना आवश्यक है।
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दण्ड के विभिन्न सिद्धांत और प्रकार |
दण्ड क्या है
किसी व्यक्ति को ऐसे कृत्य के बदले, जो समाज विरोधी है या जिसे विधि के अंतर्गत अपराध माना गया है, दिए गए कष्ट को, जो शारीरिक या आर्थिक रूप में हो सकता है दण्ड कहते हैं।
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दण्ड की परिभाषा
कुछ विद्वानों के अनुसार दण्ड कि परिभाषा निम्नलिखित हैं –सेठना (sethna) के अनुसार, "दण्ड एक प्रकार की सामाजिक निंदा है, और उसमें यह जरूरी नहीं है कि शारीरिक कष्ट अनिवार्य रूप से सम्मिलित हो।"
टाफ्ट (Taft) के अनुसार, "दण्ड वह जागरूक दबाव है, जो समाज में शांति भंग करने वाले व्यक्ति को अवांछनीय अनुभवों वाला कष्ट देता है।"
दण्ड का उद्देश्य
दंड का मुख्य उद्देश्य समाज में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना होता है । प्राचीन काल में अपराधी को दंड देने का मुख्य उद्देश्य समाज के अन्य व्यक्तियों को भयभीत करना होता था जिससे समाज में शांति बनी रहे जबकि वर्तमान में दंड का मुख्य उद्देश्य अपराधी को सुधारना है ।वर्तमान दंड व्यवस्था यह कहती है, "हमें अपराध का अंत करना है अपराधी का नहीं"।दण्ड के सिद्धांत
दंड की मुख्यता पांच सिद्धांत है –- प्रतिशोधात्मक सिद्धांत (Retributive Theory)
- प्रतिरोधात्मक सिद्धांत (Detterent Theory)
- निरोधात्मक सिद्धांत (Preventive Theory)
- सुधारात्मक सिद्धांत (Reformative Theory)
- आदर्शात्मक सिद्धांत (Idealistic Theory)
(1) प्रतिशोधात्मक सिद्धांत (Retributive Theory)
यह बदले की भावना पर आधारित है अर्थात "जैसी करनी वैसी भरनी" जैसे, आंख के बदले आंख और खून के बदले खून । इस सिद्धांत के अनुसार, जितनी क्षति अपराधी द्वारा पहुंचाई गई है उतनी क्षति उसे भी पहुंचनी चाहिए तभी वह अपराधी प्रवृत्ति से मुक्त हो सकेगा।(2) प्रतिरोधात्मक सिद्धांत (Detterent Theory)
इस सिद्धांत के अनुसार, अपराधी को ऐसा दंड मिलना चाहिए जिससे समाज के अन्य व्यक्ति भयभीत हो सके और अपराध से दूर रहे । इसमें अपराधी को उसके अपराध से गंभीर दंड दिया जाता था जिससे वह स्वयं भी अपराध करना छोड़ दें।(3) निरोधात्मक सिद्धांत (Preventive Theory)
इस सिद्धांत का अभिप्राय अपराधी को अपराध करने से रोकना है जिससे समाज सुरक्षित हो सके । जिसके लिए अपराधी को समाज से पृथक कर दिया जाता है जैसे कारागार में डालना, बहिष्कार आदि।(4) सुधारात्मक सिद्धांत (Reformative Theory)
सुधारात्मक सिद्धांत का अभिप्राय अपराधी व्यक्ति को सुधारना है ,उसका इलाज करना है । इसका उद्देश्य अपराधी को अच्छा व्यक्ति बनाना है , इसके लिए अपराधियों को कारागार में अनेक प्रकार का ज्ञान दिया जाता है। आज के समय में दंड का सुधारात्मक सिद्धांत ही अधिक उपयोगी माना गया है।(5) आदर्शात्मक सिद्धांत (Idealistic Theory)
दंड का मुख्य उद्देश्य भय उत्पन्न करना या अपराधों की रोकथाम करना नहीं है बल्कि न्याय की स्थापना करना भी है। यह सिद्धांत कहता है कि, उचित यही है कि अपराधी व्यक्ति को उतना ही दण्ड दिया जाए, जितना अपराध की प्रवृत्ति के अनुकूल हो। क्योंकि व्यक्ति अपराध अनैतिकता के विवश होकर करता है , अतः दण्ड का मुख्य उद्देश अपराधी व्यक्ति को नैतिक बनाना है।अभी हमने जाना कि दण्ड के विभिन्न सिद्धांत क्या है। आदिकाल से लेकर वर्तमान तक दंड के बदलते स्वरूप के आधार पर ऊपर दंड के मुख्य तैया मुख्यतया पांच सिद्धांतों का वर्णन किया गया है अब हम जानेंगे की दण्ड के प्रकार कितने हैं।
दण्ड के प्रकार
भारतीय दंड संहिता, की धारा 53 में छह प्रकार के दंड की व्यवस्था की गई है जिनमें से एक को निरस्त किया जा चुका है।वर्तमान काल मे अपराधी व्यक्ति को उसकी द्वारा किए गए अपराध के अनुसार, विधि के अंतर्गत दिए जाने वाले दंड निम्नलिखित है–- मृत्यु दंड
- आजीवन कारावास
- कारावास
- संपत्ति को जब्त करना
- जुर्माना।
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(1) मृत्युदंड
सविता में उल्लेखित निम्नलिखित अपराधों के लिए मृत्युदंड दिया जाता है –- भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करना (धारा 121)
- विद्रोह के लिए दुष्प्रेरित किया जाना जिसके परिणाम स्वरूप विद्रोह हो (धारा 132)
- ऐसा मिथ्या साक्ष्य देना या गढना, जिसके कारण निर्दोष व्यक्ति को मृत्यु दंड दिया जाए (धारा 194)
- हत्या (धारा 302)
- किसी अवयस्क, पागल या उम्मत को आत्महत्या के लिए प्रेरित करना धारा (305)
- ऐसी डकैती, जिसमें हत्या कारित की गई हो धारा (396) ;एवं
- ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसे आजीवन कारावास का दंड मिला हो, हत्या का प्रयास करना, यदि उपहति कारित की गई हो ।धारा (307)।
(2) आजीवन कारावास
संहिता की धारा 57 के अनुसार, आजीवन कारावास का अभिप्राय 20 वर्ष तक के कारावास से होता है । एक मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह प्रतिपादित किया गया है कि आजीवन कारावास से अभिप्राय कठोर आजीवन कारावास से है।(3) कारावास
कारावास भी तीन प्रकार के होते हैं –- कठोर कारावास,
- साधारण कारावास, एवं
- एकांत कारावास।
(4) संपत्ति को जब्त करना
दंड का यह प्रकार आज के समय में लुप्त सा हो गया है केवल निम्नलिखित अपराधों में अपराधी व्यक्ति की संपत्ति को जब्त करने का दंड दिया जा सकता है–- भारत सरकार से मैत्री रखने वाले राज्य में लूटपाट करना (धारा 126),
- उपयुक्त प्रकार से लूटपाट या युद्ध द्वारा प्राप्त संपत्ति को अपने आधिपत्य में लेना (धारा 127)
- किसी लोक सेवक द्वारा अवैध रूप से संपत्ति का क्रय किया जाना, जिसके लिए इस प्रकार की संपत्ति को क्रय करना मना है धारा (169)।
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(5) जुर्माना
भारतीय दंड संहिता में अनेक ऐसे अपराधों का वर्णन किया गया है जिनमें दण्ड के लिए केवल जुर्माने की व्यवस्था है। कैसी अपराध है जिनमें जुर्माना और कारावास दोनों की व्यवस्था है। भारतीय दंड संहिता की धारा 63 से धारा 70 तक में जुर्माने के संबंध में विस्तृत व्याख्या की गई है।वर्तमान समय में विधि के अंतर्गत दण्ड के यही प्रकार प्रचलन में है और इन्हीं की सहायता से अपराधी को उसके अपराध के अनुरूप दण्ड दिया जाता है और उसमें सुधार करने की पर्याप्त कोशिश की जाती है।
हमने दंड के विषय में प्रत्येक पहलू पर पर्याप्त विचार किया है जैसे— दंड क्या है , दण्ड की परिभाषा, दंड का उद्देश्य, दंड के सिद्धांत और दण्ड के प्रकार। विधि के अंतर्गत एक महत्वपूर्ण विषय है और इसके विषय में संपूर्ण ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान तक अपराधियों को दिए जाने वाले दंड में महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं जो उनके नैतिक विकास में सहायक है आज अपराधी को नहीं बल्कि अपराध का अंत करने का भरपूर प्रयास किया जाता है और अपराधी व्यक्ति की मनोदशा में सुधार किया जाता है जिससे स्वच्छ एवं सुरक्षित समाज का विकास हो सके।
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