R.T.I. का जवाब न आने पर क्या करे तथा सूचना का अधिकार अधिनियम पर विस्तार से चर्चा




सूचना का अधिकार अधीनियम (Right to information act,2005)
सूचना का अधिकार अधीनियम (Right to information act,2005)

भारत एक लोकतंत्रात्मक देश है । जहां की शासन प्रणाली जनता पर निर्भर करती है और जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि ही देश की शासन प्रणाली का निर्माण करते हैं । परंतु लोकतंत्र देश के लिए प्रतिनिधि चुनने तक ही सीमित नहीं है अपितु इन प्रतिनिधियों द्वारा किए जाने वाले कार्यों की समीक्षा करना भी है , जिस दिशा में सूचना का अधिकार  अधिनियम ( Right to information act,2005) मील का पत्थर है । इस लेख में हम सूचना के अधिकार के बारे में विस्तार से जानेंगे ।

सूचना का अधिकार क्या है

सूचना के अधिकार का अर्थ है भारत के नागरिक का सरकारी कार्य के निष्पादन से संबंधित क्रिया कलापों तथा दस्तावेजों के बारे में जानकारी / सूचना प्राप्त करने का अधिकार । जिससे सरकारी कार्यों में पारदर्शिता आ सके ।

   ब्रिटिश शासन काल में सन् 1923 मैं शासकीय गोपनीयता अधिनियम पारित किया गया । जिससे सरकारी कार्यों में जनता की भूमिका समाप्त कर दी गई तथा इस अधिनियम के  फलस्वरूप प्रशासन में अनेक बुराइयों उत्पन्न हो गई जैसे– भ्रष्टाचार ।

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सर्वप्रथम इस ओर सरकार का ध्यान उच्चतम न्यायालय के निर्णय द्वारा गया । सन 1975 में उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राजनारायण के वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा था कि , सरकारी कार्यों का विवरण नागरिकों को प्रदान करने की व्यवस्था की जाए ।

अधिनियम कब लागू हुआ

यह अधिनियम 12 अक्टूबर 2005 संपूर्ण भारत में लागू किया गया । उस समय यह अधिनियम जम्मू कश्मीर में लागू नहीं किया गया था किंतु वर्तमान में जम्मू कश्मीर राज्य से अनुच्छेद 370 अर्थात् विशेष राज्य का दर्जा हटने से यह वहां पर भी लागू हो गया है ।

सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन कौन कर सकता है

अधिनियम की धारा 3 के अनुसार भारत का प्रत्येक नागरिक सूचना प्राप्त करने का अधिकारी है किंतु ऐसी सूचना का विधि पूर्ण होना आवश्यक है ।
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आवेदन की प्रक्रिया

अधिनियम की धारा 6 में आवेदन की प्रक्रिया को बताया गया है । जो व्यक्ति सूचना प्राप्त करना चाहता है वह संबंधित लोक अधिकारी को लिखित या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से हिंदी , अंग्रेजी या उस क्षेत्र की भाषा जिस क्षेत्र में सूचना मांगी जा रही है , आवेदन निर्धारित शुल्क के साथ कर सकता है ।

अधिनियम की धारा 7 के अनुसार आवेदन का उत्तर 30 दिनों के भीतर दिया जाएगा । किंतु यदि सूचना किसी व्यक्ति के जीवन व स्वतन्त्रता से संबंधित है तो उसका उत्तर 48 घंटे के भीतर दिया जाएगा ।

किन मामलों में सूचना देने से छूट दी गई है

अधिनियम की धारा 8 में कहा गया है कि, ऐसी सूचना जिसके प्रकट होने से भारत की प्रभुता, एकता एवं अखंडता सुरक्षा एवं हित पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो या अपराध को प्रोत्साहन मिलता हो, तो लोक प्राधिकारी को ऐसी सूचना देने के लिए बाध्यता नहीं होगी।

केन्द्रीय सूचना आयोग का गठन

धारा 12 के अनुसार केंद्रीय सरकार द्वारा केंद्रीय सूचना आयोग का गठन किया जाएगा , जिसमें एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा दस अन्य सूचना आयुक्त होंगे ।  तथा इन सभी आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।

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केंद्रीय सूचना आयोग में नियुक्त आयुक्तों का कार्यकाल

धारा 13 के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य  आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष की अवधि या 65 वर्ष तक की आयु तक का होगा ।  किंतु वर्तमान में सूचना का अधिकार अधिनियम संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया गया है जिससे कार्यकाल की इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है । तथा संशोधन विधेयक द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि,  मुख्य सूचना आयुक्त तथा अन्य सूचना आयुक्तों के कार्यकाल का निर्धारण केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा।

राज्य सूचना आयोग का गठन

प्रत्येक राज्य की सरकार द्वारा राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा । जिसमें मुख्य सूचना आयुक्त तथा अन्य आयुक्तों की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी । (अधिनियम की धारा 15)

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सूचना प्राप्त ना होने पर अपील की व्यवस्था

यदि कोई व्यक्ति किसी विभाग को सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है और वह विभाग सूचना प्रदान नहीं करता है तो ऐसी स्थिति में संबंधित व्यक्ति सूचना आयोग को अपील कर सकता है ,कि उसे सूचना उपलब्ध कराई जाए । अधिनियम की धारा 19 से अपील की व्यवस्था की गई है।

सूचना न देने पर दंड की व्यवस्था

अधिनियम की धारा 20 में यह कहा गया है कि यदि किसी  लोक प्राधिकारी या किसी ऐसे अधिकारी ने जो सूचना देने के लिए जिम्मेदार है , ने बिना किसी युक्तियुक्त कारण के सूचना के लिए आवेदन प्राप्त करने से इनकार किया है या नियत समय के भीतर (अर्थात 30 दिन के भीतर) सूचना उपलब्ध नहीं कराई है या जानबूझकर गलत ,अपूर्ण या भ्रामक सूचना दी है या विषय से संबंधित सूचना को नष्ट कर दिया है, तो उसे प्रतिदिन 250 रु का अर्थदंड जो अधिकतम 25000/- तक हो सकेगा, दंडित किया जाएगा।

इसी प्रकार धारा 23 में यह कहा गया है कि यदि किसी लोक प्राधिकारी पर अर्थ दण्ड या अन्य कार्यवाही का आदेश दिया गया है तो वह इसके विरूद्ध न्यायालय में वाद नहीं कर सकता है।

इस लेख में सूचना का अधिकार अधिनियम के बारे में विस्तृत उल्लेख किया गया है। सरकारी विभाग/कार्यालय तो इस अधिनियम के दायरे में है ही । और अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने प्राइवेट स्कूलों को भी इस अधिनियम के दायरे में कर दिया है। इसके लिए राज्य सूचना आयोग (SIC) ने एक आदेश जारी कर कहा है कि प्राइवेट स्कूल RTI के तहत मांगी गई सूचना देने से इनकार नहीं कर सकते । इसके लिए प्राइवेट स्कूलों में जन सूचना अधिकारियों की नियुक्ति करने को कहा गया है।


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