भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 में उपबंधित "उपधारणा" पर विस्तृत वर्णन

उपधारणा | धारा 4 | Presumption under Indian evidence act in Hindi
उपधारणा | धारा 4 | Presumption under Indian evidence act in Hindi


इस लेख में हम बात करेंगे "(Presumption) उपधारणा" क्या है अर्थात भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की "धारा 4" की । भारतीय साक्ष्य अधिनियम के सामान्य सिद्धांत के अनुसार,  प्रत्येक तथ्य जिसके आधार पर कार्रवाई का एक पक्षकार न्यायालय से उसके पक्ष में निर्णय की मांग करता है , तो उसे वह तथ्य साबित करना होगा । इसके विपरीत साक्ष्य विधि में ऐसे उपबंधों का भी समावेश किया गया है , जिनके आधार पर न्यायालय कुछ तथ्यों पर बिना सबूत की मांग की  विश्वास कर सकता है या विचार कर सकता है , अर्थात किसी ज्ञात तथ्य के आधार पर किसी अज्ञात तथ्य के अनुमान को ही उपधारणा कहते हैं ।


भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत उपधारणा का शाब्दिक अर्थ है , "किसी एक प्रमाणित तथ्य के आधार पर दूसरे तथ्य को मान लेना । उपधारणा दो तथ्यों के मध्य संबंध पर आधारित होती हैं।


Example–

क ,ख के विरुद्ध वाद लाता है कि ख ने उससे प्रोनोट के आधार पर 400 रुपया उधार लिया । ख स्वयं के द्वारा प्रोनोट के निष्पादन को स्वीकार करता है । इससे प्राकृतिक उपधारणा निकलती है कि , ख ने क  से 400 रूपए उधार लिया ।

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अधिनियम भारतीय साक्ष्य अधिनियम ( Indian evidence act ) की धारा 4 में उपधारणा के तीन रूपों का उल्लेख किया गया है –

  1. उपधारणा कर सकेगा ( May presume )
  2. उपधारणा करेगा ( Shall presume )
  3. निश्चायक सबूत ( Conclusive Proof )

   (1)  उपधारणा कर सकेगा ( May presume )

इस अधिनियम के अंतर्गत जहां कहीं भी यह उपबंधित है कि , न्यायालय उपधारणा कर सकेगा , वहां या तो न्यायालय उस तथ्य को सिद्ध समझेगा या उसके लिए सबूत की मांग कर सकेगा । यह पूर्णता न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है ।


 (2)  उपधारणा करेगा ( Shall presume )

इसी प्रकार इस अधिनियम के अंतर्गत यहां कहीं भी यह उपबंधित है कि , न्यायालय उपधारणा करेगा , वहां न्यायालय उस तथ्य को तब तक सिद्ध मानेगा , जब तक उस तथ्य के विरुद्ध साक्ष्य पेश नहीं किया जाता ।

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  (3) निश्चायक सबूत ( Conclusive Proof )

यहां एक तथ्य की प्रमाणिकता द्वारा दूसरे तथ्य को सिद्ध घोषित किया गया है वहां न्यायालय एक तथ्य के सिद्ध हो जाने पर दूसरे तथ्य को स्वयं सिद्ध मानेगा और उसके विरुद्ध साक्ष्य दिए जाने की अनुमति नहीं देगा ।

Example–

भारतीय दंड संहिता की धारा 82 में  यह उपबंधित है कि, यदि कोई 7 वर्ष से कम उम्र का बालक कोई अपराध करता है , तो वह उस अपराध के लिए दोषी नहीं होगा । यह विधि की उपधारणा या  निश्चायक उपधारणा है , जिसे मानने के लिए न्यायालय बाध्य है ।

खंडनीय एवं अखण्डनीय उपधारणा ( Rebuttable presumption and Irrebuttable presumption )

उपधारणा दो तरह की होती हैं एक वह जो न्यायालय के विवेक पर निर्भर करती है तथा दूसरी जिन्हें न्यायालय मानने के लिए बाध्य है , अर्थात वह उपधारणा जो न्यायालय के विवेक पर निर्भर करती है वह खण्डनीय होती है अर्थात दूसरे पक्षकार द्वारा पर्याप्त सबूत देकर उनका खंडन भी किया जा सकता है जबकि दूसरी अवधारणा है जिनके लिए न्यायालय बाध्य है वह अखंडनीय होती हैं ।

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अतः अधिनियम की धारा 4 (1)तथा 4 (2) में उपबंधित उपधारणाएं खंडनीय होती हैं जबकी धारा 4 की उपधारा 3 में उपबन्धित उपधारणाएं खण्डनीय नहीं होती हैं  । यह विधि की ऐसी उपधारणा है जिसे न्यायालय अंतिम मानता है एवं ऐसी उपधारणा को सबूत देकर भी खंडित नहीं किया जा सकता है । यह आज्ञापक प्रकृति की होती हैं । इस प्रकार की उपधारणाएं हैं – धारा 41 , 115 , 116 ,117 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 82 ।

उपधारणा के प्रकार ( Different kinds of presumption under Indian evidence act )

उपधारणा दो प्रकार की होती है –
  1. तथ्य की उपधारणा ( Presumption of Fact )
  2. विधि की उपधारणा ( Presumption of Law )

 (1)  तथ्य की उपधारणा ( Presumption of Fact )

तथ्य की उपधारणा वह उपधारणा है , जो प्राकृतिक या मनुष्य के अनुभव पर आधारित होती है । भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 (1) यह कहती है कि न्यायालय कुछ परिस्थितियों में किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा परंतु वह ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है , वह चाहे तो माने या ना माने , यह पूर्णतया न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है अर्थात् तथ्य की उपधारणा खंडनीय उपधारणा ( Rebuttable presumption ) होती है ।

Example–

A के पास B की खोई हुई घड़ी पाई जाती है तो यह उपधारणा की जाएगी कि A ने B की घड़ी चुराई है या किसी ऐसे व्यक्ति से ली है जिसने घड़ी चोरी की है ।

 (2)  विधि की उपधारणा ( Presumption of Law )

विधि की उपधारणा प्राकृतिक संव्यवहार एवं मानवीय तर्क पर आधारित ना होकर विधि के प्रावधानों पर आधारित होती है । विधि की अवधारणा खंडनीय तथा अखण्डनीय दोनों प्रकार की होती है ।अधिनियम की धारा 107 , 108 तथा 112 खंडनीय उपधारणाओं के उदाहरण है । इसी प्रकार अधिनियम की धारा 41,115 , 116 , 117 अखण्डनीय उपधारनाओं के उदाहरण है ।  विधि के उपधारणा विधि का भाग होती है ।

इसी प्रकार हम यह कह सकते हैं कि उपधारणा का साक्ष्य विधि में महत्वपूर्ण स्थान है । उपधारणा का अर्थ है किसी तथ्य को मान लेना , जबकि सबूत किसी बाद में निर्णय का महत्वपूर्ण आधार होते हैं । उपधारणाएँ सबूत को प्रभावित करने का साधन है । उपधारणाएं सिविल तथा दांडिक दोनों मामलों में होती हैं । अतः उपधारणाएं किसी मामले की कार्रवाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।


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