Burden of proof under Indian evidence act in hindi (sec 101–114)


Burden of proof under Indian evidence act in hindi
Burden of proof under Indian evidence act in hindi


आज इस लेख में हम बात करेंगे भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रचलित सिद्धांत "सबूत का भार" की । भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 101 से धारा 114 तक में "सबूत का भार" के विषय में बताया गया है । अधिनियम के अध्याय 7 में "सबूत के भार" के विषय में उपबन्ध किए गए हैं । किसी भी वाद में साक्ष्य का महत्वपूर्ण स्थान होता है ,साक्ष्य के द्वारा ही वाद को निर्णित किया जाता है । "सबूत के भार" के विषय में विस्तृत उपबंध इस प्रकार है –

सबूत का भार (Burden of proof) – sec 101

सबूत का भार की परिभाषा धारा 101 में दी गई है । इस परिभाषा के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी तथ्य को साबित करने के लिए आबद्ध या बाध्य हो तब यह कहा जाता है कि उस व्यक्ति पर "सबूत का भार" है ।


धारा 101 के अनुसार , किसी बाद में जो पक्षकार यह चाहता है कि , न्यायालय किसी विधिक अधिकार या दायित्व के विषय में उसके द्वारा दिए गए तथ्यों के आधार पर निर्णय दे, तो यह उसका ही दायित्व होगा कि , मैं उन तथ्यों की सत्यता सिद्ध करें।

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Example –

यदि एक व्यक्ति क यह चाहता है कि ख को हत्या के अपराध के लिए सजा दी जाए तो यह सिद्ध करने का भार की ख ने हत्या की है , क  पर ही होगा ।

सबूत का भार किस पर होता है (धारा 102)

धारा 102 के अनुसार , किसी भी बाद में "सबूत का भार" उस व्यक्ति पर होता है जो वाद में असफल हो जाएगा , यदि दोनों पक्षकारों में से किसी के द्वारा कोई साक्ष्य प्रस्तुत ना किया जाए।


इस प्रकार धारा 102 उस अवस्था को बताती है जब वादी द्वारा वाद को धारा 101 के अन्तर्गत स्थापित करने के बाद साक्ष्य देने का भार पक्षकारों पर आवश्यकतानुसार बदलता रहता है


स्टेट ऑफ एच. पी. बनाम श्रीकांत शेकारी के वाद में न्यायालय ने यह निर्धारित किया है कि, बलात्कार के मामलों में सहमति सिद्ध करने का भार अभियुक्त पर होगा क्योंकि यदि वह सहमति सिद्ध नहीं कर पाता है तो वह दोषी होगा।

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विशिष्ट तथ्य के बारे में सबूत का भार (धारा 103)

धारा 103 वाद से संबंधित किसी विशिष्ट तथ्य को सिद्ध करने के भार के बारे में प्रावधान करती है । धारा 103 के अनुसार, किसी विशिष्ट तथ्य के सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो न्यायालय से चाहता है कि वह उस विशिष्ट तथ्य के अस्तित्व में  विश्वास करें ।


धारा 104 में ऐसे तथ्यों को साबित करने के भार के बारे में बताएं गया है जिसका साबित किया जाना किसी व्यक्ति को किसी अन्य तथ्य का साक्ष्य देने को समर्थ करने के लिए आवश्यक है , उस व्यक्ति पर है जो ऐसा चाहता है देना चाहता है।


Example –

अ , ब द्वारा किए गए मृत्युकालिक कथन को सिद्ध करना चाहता है तो पहले अ को ब की मृत्यु सिद्ध करनी होगी ।

 

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यह साबित करने का भार की अभियुक्त का मामला अपवादों के अंतर्गत आता है (105)

जब कोई व्यक्ति किसी अपराध का अभियुक्त है , तब उन परिस्थितियों के अस्तित्व को सिद्ध करने का भार , जो उस मामले को भारतीय दंड संहिता, 1860 या अन्य किसी विधि के अंतर्गत किसी विशेष अपवाद या परंतुक के अंतर्गत कर देता है, उस व्यक्ति पर होगा ।


Example –

क हत्या के मामले में अभियुक्त है और वह यह कहता है कि , वह पागल या उन्मत्त होने के कारण , उस कार्य की प्रकृति को नहीं समझता था , तो इस तथ्य को सिद्ध करने का भार क पर ही होगा ।

Note –

धारा 101 से 104 तक के उपबंध दांडिक और फौजदारी दोनों मामलों पर लागू होते हैं , जबकि धारा 105 के उपबंध केवल दांडिक कार्यवाही पर लागू होते हैं ।

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सबूत का भार के नियम के अपवाद

धारा 101 में प्रतिपादित सामान्य नियम के  "कि सबूत का भार उस व्यक्ति पर होता है जो किसी तथ्य का प्राख्यान करता है और उसके आधार पर न्यायालय से निर्णय की विनती करता है" के निम्नलिखित अपवाद है, जिसके अनुसार उस व्यक्ति को जो किसी तथ्य का प्राख्यान करता है , उस पर उस तथ्य को सिद्ध करने का भार ना होकर बल्कि दूसरे पक्षकार पर उन तथ्यों के प्राख्यान को गलत सिद्ध करने का भार होगा –

  1. जब कोई तथ्य विशेषतः किसी व्यक्ति के ज्ञान में हो , तब उस तथ्य को साबित करने का भार उस पर है , (धारा 106)
  2. जहां पर विधि की उपधारणा उस व्यक्ति के पक्ष में है जो उसका प्रतिपादन करता है वहां सबूत का भार दूसरे पक्ष कार पर होता है । तथ्य की उपधारणा के संबंध में यही नियम है । व्यक्ति द्वारा किसी तथ्य का प्राख्यान करने पर , वह अभिकथन के उतने भाग को सिद्ध करने के लिए उपेक्षित नहीं होगा,  जितने के विषय में विधि के उपधारणा उसके हक में है । यह सभी उपबंध धारा 107 से 114 में आते हैं ।

Example–

यदि सात वर्ष के किसी विवाहिता स्त्री की मृत्यु हो जाती है , तो न्यायालय द्वारा यह उपधारणा की जाएगी कि,  महिला को आत्महत्या के लिए उसके पति और ससुराली जन द्वारा उकसाया गया है, चाहे वह आत्महत्या का ही मामला हो और सत्य सिद्ध करने का संपूर्ण भार महिला के पति तथा उसके संबंधियों पर होगा ।

इस लेख में हमने "सबूत का भार ( burden of proof )"के संबंध में नियमों पर विस्तृत विवेचना की । सबूत का भार भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872 का महत्वपूर्ण सिद्धांत है । मामला चाहे दांडिक हो या सिविल भारतीय साक्ष्य अधिनियम के बिना उसका निर्णय नहीं हो सकता है न्यायालय का निर्णय इस अधिनियम पर टिका होता है ।

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