साक्ष्य विधि (Law of Evidence) क्या है तथा साक्ष्य विधि कब लागू हुई और तथ्य (Fact) , विवाधक तथ्य (Fact–in–issue) एवं सुसंगत तथ्य (Relevant Fact) पर विस्तार से चर्चा –
विधि प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार देती है और कर्तव्य भी अधिरोपित करती है । अतः जहां कोई अधिकार है , वहां उस अधिकार को लागू करने के लिए उपचार भी है । इस प्रकार विधि दो प्रकार की होती है – एक जो अधिकार देती है तथा दूसरी जो उन्हें लागू करती है । विधि का वह भाग जो अधिकार और दायित्व को परिभाषित करता है , उसे मौलिक विधि (Substantive law) कहते हैं , जबकी विधि का वह भाग जिसमें इन अधिकारों को और दायित्वों को प्रवर्तित कराने के लिए प्रक्रिया विहित है , प्रक्रिया विधि कहते हैं । अतः जब किसी अधिकारी या दायित्व का अस्तित्व प्रश्नगत होता है तब उसका उत्तर मौलिक विधि देती है जबकि उसको लागू प्रक्रियात्मक विधि के द्वारा किया जाता है ।
Example
क ने ख की घड़ी चुराई जिससे क को संपत्ति की हानि हुई। अतः अपराध का निर्धारण भारतीय दंड संहिता द्वारा किया जाएगा जो कि मौलिक विधि है तथा जो अपराधों को परिभाषित करती है जबकि दंड प्रक्रिया संहिता तथा भारतीय साक्ष्य अधिनियम वाद की प्रक्रिया को विनियमित करेंगे ।साक्ष्य विधि प्रक्रिया विधि की महत्वपूर्ण शाखा है । न्याय निर्णय के लिए यह अत्यंत आवश्यक है । साक्ष्य विधि के दो प्रमुख कार्य हैं – पहला उन नियमों या सिद्धांतों को प्रतिपादित करना जिससे यह निश्चित हो सके कि कौन से तथ्य न्यायालय के समक्ष पेश किए जा सकते हैं और दूसरा उन्हें किस प्रकार पेश किया जाए । साक्ष्य विधि के अभाव में कोई वाद हल हो ही नहीं सकता है। क्योंकि साक्ष्य विधि ही सत्य और असत्य पर प्रकाश डालती हैं । "साक्ष्य विधि ही यह तय करती है कि कौन से तथ्य विवाधक तथ्य से संबंधित है और उन्हें वाद के निस्तारण के लिए न्यायालय के समक्ष पेश किया जा सकता है । साक्ष्य विधि का मुख्य उद्देश्य तथ्यों के माध्यम से सत्य की खोज करना है ।"
साक्ष्य विधि कब लागू हुई
भारतीय साक्ष्य अधिनियम को सन 1872 में ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किया गया । यह तीन भागों में विभाजित है । भारतीय साक्ष्य अधिनियम में 11 अध्याय और 167 धाराएं हैं । भारतीय साक्ष्य अधिनियम प्रक्रियात्मक विधि है तथा यह सभी न्यायिक कार्रवाई ऊपर लागू होती है ।Note – वैसे तो भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872 सभी न्यायिक कार्यवाहियों पर लागू होता है , किंतु यह शपथ पत्र और मध्यस्थ पर लागू नहीं होता । अधिनियम की धारा 1 में साक्ष्य के अंतर्गत शपथ पत्र को सम्मिलित नहीं किया गया है।
वुडरफ और अमीर अली ने कहा है साक्ष्य विधि निश्चित करती है कि :–
- मौलिक विधि द्वारा परिभाषित तथ्यों के अस्तित्व को स्थापित करने के लिए किस प्रकार के तथ्यों को साबित किया जा सकता है ,
- किस प्रकार का सबूत उन तथ्यों को सिद्ध करने के लिए दिया जाना है ,
- उन तथ्यों को देने का भार किस पर है,
- तथा उन्हें कैसे देना है ।
साक्ष्य विधि को पर्याप्त समझने के पश्चात अब यह प्रश्न उठता है कि तथ्य क्या है क्योंकि साक्ष्य विधि में तथ्य बहुत ही महत्वपूर्ण है या यह कहें कि तथ्य साक्ष्य विधि की नींव है ।
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तथ्य , विवधाक तथ्य एवं सुसंगत तथ्य की परिभाषा एवं अर्थ
साक्ष्य विधि का मुख्य न्यायालय को उस अवस्था तक पहुंचाना होता है जहां न्यायालय वाद को निर्णित कर सके । न्यायालय का निर्णय इन्हीं तथ्यों पर आधारित होता है इसलिए अब हम समझेंगे तथ्य विवाधक तथ्य तथा सुसंगत तथ्य क्या होते हैं ।
तथ्य (Fact)
अधिनियम की धारा 3 (निर्वाचन खंड) में तथ्य को परिभाषित किया गया है , जो निम्न प्रकार है –“ तथ्य से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं –
- ऐसी कोई वस्तु , वस्तुओं की अवस्था या वस्तुओं का संबंध जो इंद्रियों द्वारा बोधगम्य है , जैसे – मकान गिर गया , आदमी मोटा है आदि,
- कोई मानसिक दशा जिसका भान व्यक्ति को है । जैसे आशय , कपट आदि यह सभी मनोवैज्ञानिक या आंतरिक तथ्य है ।"
Example
- किसी मनुष्य ने कुछ सुना या देखा या अमुक शब्द कहे, एक तथ्य है।
- यह कि कोई मनुष्य अमुक राय रखता है ,अमुक आशय रखता है, एक तथ्य है ।
विवाधक तथ्य (Facts in issue )
अधिनियम की धारा 3 में विवाधक तथ्य को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है –“ ऐसा कोई भी तथ्य जिस अकेले से ही या अन्य तथ्यों के साथ में किसी ऐसे अधिकार , दायित्व या निर्योग्यता के, जिसका किसी वाद या कार्यवाही में प्रख्यान या प्रत्याख्यान किया गया है , अस्तित्व , अनस्तित्व , प्रकृति या विस्तार की उत्पत्ति अवश्यमेव होती है ।"
Example
ख की हत्या क का अभियुक्त है उसके विचारण में निम्नलिखित तथ्य विवाधक तथ्य हो सकते हैं –- यह कि क ने ख की मृत्यु कारित की ,
- यह की क का आशय ख की मृत्यु कारित करने का था ,
- यह की ख को क से है गंभीर और अचानक प्रकोपन मिला।
अतः विवाधक तथ्य का अर्थ है – जिन तथ्यों पर विवाद है । किसी विवाद में एक से अधिक पक्षकार होते हैं तथा पक्षकार कुछ तथ्यों पर सहमत होते हैं तथा कुछ तथ्यों पर असहमत होते हैं । जिन तथ्यों पर पक्षकार असहमत होते हैं उन्हें विवाधक तथ्य कहते हैं । अतः विवाधक तथ्य वाद का मुख्य बिंदु होते हैं जिन पर वाद की कार्यवाही टिकी होती है । किसी वाद में विवाधक तथ्य एक से अधिक भी हो सकते हैं । अतः संपूर्ण वाद विवाधक तथ्य के इर्द-गिर्द ही घूमता है।
Example
रमेश पर सुरेश की हत्या का मुकदमा चलता है । इस वाद में अभियोजन पक्ष यह कहता है कि रमेश ने सुरेश की हत्या की है जबकि रमेश कहता है कि उसने हत्या नहीं की । इस प्रकार प्रस्तुत वाद में "रमेश ने सुरेश की हत्या की है या नहीं " यह विवाधक तथ्य होगा । पूरा वाद इसी विवाधक तथ्य पर आधारित होगा तथा समस्त साक्ष्य इन्ही तथ्यों को साबित या नासाबित करने के लिए प्रस्तुत किए जाएंगे ।सुसंगत तथ्य ( Relevant Fact )
अधिनियम की धारा 3 में सुसंगत तथ्य को निम्न प्रकार प्रभावित किया गया है –“ एक तथ्य दूसरे तथ्य से सुसंगत तब कहा जाता है , जबकि तथ्यों की सुसंगति से संबंधित इस अधिनियम के उपबन्धो में निर्दिष्ट प्रकारों में से किसी भी प्रकार से वह तथ्य उस दूसरे तथ्य से संसक्त हो ।"
अतः वह सभी तथ्य सुसंगत है जो विवाधक तथ्य के बारे में कोई युक्तियुक्त उपधारणा प्रदान करने में समर्थ होते हैं। अर्थात सुसंगत तथ्यों से आशय है – दो तथ्यों के बीच संबंध और वह संबंध इस प्रकार का होना चाहिए कि एक का अस्तित्व और अनस्तित्व दूसरे पर आधारित हो ।
इस प्रकार हमने इस लेख में यह जाना कि साक्ष्य विधि क्या है , यह कब लागू हुई , तथा इसमें कितनी धाराएं तथा अध्याय हैं । हमारी न्याय व्यवस्था साक्ष्य विधि के बिना कुछ नहीं है । साक्ष्य विधि अपने आप में एक संहिता है । साक्ष्य विधि में कुछ ऐसे शब्द है जिनका उल्लेख प्रत्येक नियम और सिद्धांत में किया गया है , जैसे तथ्य, विवाधक तथ्य तथा सुसंगत तथ्य । भारतीय साक्ष्य अधिनियम ,1872 को गहराई से समझने के लिए प्रत्येक शब्द के अर्थ को समझना आवश्यक है । यह जानकारी कैसी लगी टिप्पणी अवश्य करें ।
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